Published On Mar 21, 2015
Lyrics :
॥ दोहा ॥
विपदा संकट कष्ट और, दारुण दुःख भरपूर ।
साढ़ेसाती का समय, बड़ा विकट और क्रूर ॥
इश भजन और सद पाठ, हरे क्लेश और क्रूर ।
शनि कृपा सदभाव से, रहे दुःख सब दूर ॥
॥ चोपाई ॥
शनिदेव कृपालु रवि-नन्दन । सुमिरन तुम्हारा सुख-चन्दन ॥
नाश करो मेरे विघ्नों का । कृपा सहारा दु:खी जनों का ॥ 1॥
जप नाम सुमिरन नहीं कीन्हा । तभी हुआ बल बुद्धि हीना ॥
विपद क्लेश कष्ट के लेखे । रवि सुत सब तव रिस के देखे ॥ 2॥
क्रूर तनिक ब्रभु की दृष्टी । तुरत करै दारुण जप दु:ख वृष्टि ॥
कृष्ण नाम जप ‘राम कृष्णा’ । कोणस्थ मन्द हरैं सब तृष्णा ॥ 3॥
पिंगल, सौरि, शनैश्चर, मन्द । रौद्र, यम कृपा जगतानन्द ॥
कष्ट क्लेश, विकार घनेरे । विघ्न, पाप हरो, शनि मेरे ॥ 4॥
विपुल समुद्र दु:ख-शत्रु-सेना । कृष्ण सारथि नैया खेना ॥
सुरासुर नर किन्नर विद्याधर । पशु, कीट अरु नभचर जलचर ॥ 5॥
राजा रंक व सेठ, भिखारी । देव्याकुलता गति बिगाड़ी ॥
दु:ख, दुर्भिक्ष, दुस्सह संतापा । अपयश कहीं, घोर उत्पाता ॥ 6॥
कहीं पाप, दुष्टता व्यापी । तुम्हरे बल दु:ख पावै पापी ॥
सुख सम्पदा साधन नाना । तव कृपा बिन राख समाना ॥ 7॥
मन्द ग्रह दुर्घटना कारक । साढ़े साती से सुख- सन्हारक ॥
कृपा कीजिए दु:ख के दाता । जोरि युगल कर नावऊ माथा ॥ 8॥
हरीश्चन्द्र से ज्ञानी राजा । छीन लिए तुम राज-समाजा ॥
डोम चाकरी, टहल कराई । दारुण विपदा पर विपद चढ़ाई ॥ 9॥
गुरु सम सबकी करो ताड़ना । बहुत दीन हूं, नाथ उबारना ॥
तिहूँ लोक के तुम दु:ख दाता । कृपा कोर से जन सुख पाता ॥ 10॥
जौं, तिल, लोहा, तेल, अन्न, धन । तम उरद, गुड़ प्रिय मन भावन ॥
यथा सामर्थ्य जो दान करे । शनि सुख के सब भण्डार भरे ॥ 11॥
जे जन करैं दु:खी की सेवा । शनि-दया की चखैन नित मेवा ॥
बुरे स्वप्न से शनि बचावें । अपशकुन को दूर भगावें ॥ 12॥
दुर्गति मिटे दया से उनकी । हरैं दुष्ट-क्रूरता मन की ॥
दुष्ट ग्रहों की पीड़ा भागे । रोग निवारक शक्ति जागे ॥ 13॥
सुखदा, वरदा, अभयदा मन्द । पीर, पाप ध्वंसक रविनन्द ॥
दु:ख, दावग्नि विदारक मंद । धारण किए धनुष, खंग, फंद ॥ 14॥
विकटट्टहास से कम्पित जग । गीध सवार शनि, सदैव सजग ॥
जय-जय-जय करो शनि देव की । विपद विनाशक देव देव की ॥ 15॥
प्रज्जवलित होइए, रक्ष रक्ष । अपमृत्यु नाश में पूर्ण दक्ष ॥
काटो रोग भय कृपालु शनि । दुख शमन करो, अब प्राण बनी ॥ 16॥
मृत्यु भय को भगा दीजिए । मेरे पुण्यों को जगा दीजिए ॥
रोग शोक को जड़ से काटो । शत्रु को सबल शक्ति से डांटो ॥ 17॥
काम, क्रोध, लोभ, भयंकरारि । करो उच्चाटन भक्त-पुरारि ॥
भय के सारे भूत भगादो । सुकर्म पुण्य की शक्ति जगा दो ॥ 18॥
जीवन दो, सुख दो, शक्ति दो । शुभ कर्म कृपा कर भक्ति दो ॥
बाधा दूर भगा दो सारी । खिले मनोकामना फुलवारी ॥ 19॥
सुद्ध मन दु:खी जन पढ़े चालीसा । शनि सहाय हों सहित जगदीसा ॥
बढ़ैं दाम जस पानी बरखा । परखों शनि शनि तुम परखा ॥ 20॥
॥ दोहा ॥
चालिस दिन के पाथ से, मन्द देव अनूकूल ।
‘रामकृष्ण’ कष्ट घटैं, सूक्ष्म अरु स्थूल ॥
दशरथ शूरता स्मरण, मंगलकारी भाव ।
शनि मंत्र उच्चारित, दु:ख विकार निर्मूल ॥
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Shani is a deva and son of Surya and his wife Chhaya, hence also known as Chayyaputra. He is the elder brother of Yama, the Hindu god of death, who in some scriptures corresponds to the deliverance of justice. Surya's two sons Shani and Yama judge.