माइक्रोचिप्स के लिए दुनिया भर में संघर्ष [The global battle over microchips] | DW Documentary हिन्दी
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 Published On Jan 2, 2024

चाहे कंप्यूटर हों, कार, मोबाइल फोन या हों टोस्टर! इस तरह की अनगिनत रोजमर्रा की चीज़ों में माइक्रोचिप्स होते हैं. वे छोटे, असाधारण और सस्ते तो ज़रूर हैं लेकिन कोरोनोवायरस महामारी के बाद से वे राजनीतिक और औद्योगिक युद्ध का आधार रहे हैं.

चीन और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि में "माइक्रोचिप युद्ध," इस संघर्ष के सभी पहलुओं को दिखाता है. इस फिल्म में, इस औद्योगिक क्षेत्र में दुनिया के सबसे प्रभावशाली किरदार अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि माइक्रोप्रोसेसर, तेल की तरह ही रणनीतिक रूप से बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. माइक्रोचिप्स पर चल रही लड़ाई हर लिहाज़ से भू-राजनीतिक विश्व व्यवस्था की नयी परिभाषा लिख सकती है. संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में माइक्रोप्रोसेसरों की संभावित कमी के डर से इस क्षेत्र में निवेश घोषणाओं की बाढ़ आ गई है. 1990 के दशक में माइक्रोचिप उत्पादन को एशिया को सौंपने के बाद, पश्चिम में प्रमुख उद्यम अब उत्पादन की घर वापसी करवाने की कोशिश कर रहे हैं. वे इस तरह उत्पादन चेन पर नियंत्रण हासिल करना चाहते हैं.

इसके चलते, 2022 में नया कानून पास किया गया. यूरोपीय चिप्स एक्ट, जिसकी पहल यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लाएन ने की थी. और इसके जवाब में अमेरिका में राषट्रपति जो बाइडेन "चिप और विज्ञान एक्ट" लेकर आए. चीन, अमेरिका और यूरोप, छोटे माइक्रोचिप्स के लिए लड़ रहीं विश्व की बड़ी ताक़तें हैं. महामारी और संसाधनों की कमी ने इस औद्योगिक पुनर्जीवन और आर्थिक श्रेष्ठता की उनकी इच्छा को बढ़ाया है.

लेकिन क्या ऐसा संभव है? क्या पश्चिम के देश इस तरह वैश्वीकरण की नींव को चुनौती दे सकते हैं ?

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